शुक्रवार, २२ मई २००९
प्रश्न उठता है कि विज्ञान क्या है? गणित की भाँति २+२=४ जैसी पूर्णता क्या विज्ञान में होती है? सारी गिनती-मिनती और पूर्ण तैयारी के बाद कई बार राकेट/विमान नष्ट हुए है और अन्तरिक्ष यात्री/विमान यात्री मारे गये हैं। प्रयोग की अवस्था में यह संभावनाएँ रहती हैं इससे इंकार नहीं किया जा सकता किन्तु जब सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक प्रक्रिया सम्पूर्ण हो चुकी हो उसके बाद इस प्रकार की दुर्घटनाऎं क्या इंगित करती हैं? इसका मात्र इतना ही अर्थ है कि मानवीय भूलों, तंत्रीय खामियों को सिरे से नहीं नकारा जा सकता। इससे भी ऊपर एक और तथ्य, कि जिस अन्तरिक्ष में/आकाश में राकेट/विमान भेजा जा रहा है वहाँ अचानक पूर्वानुमान के विपरीत वातावरणीय परिवर्तन प्रकट हो जाए। तात्पर्य यह कि पर्यवेक्षण, तर्क,सिद्धन्त,तकनीकी आदि के पुष्ट आधारों के बाद भी चूक होती है। इसी भाँति ज्योतिष, हजारों वर्ष प्राचीन, खगोलीय/ग्रहीय पर्यवेक्षण, परीक्षण के बाद ग्रहों के प्रभावों का परिणाम बतानें वाला विज्ञान है। सत्य तो यह है कि इस क्षेत्र में सैकड़ों वर्षों से कोई नई शोध ही नहीं हुयी है। पुरानें और जीर्ण-शीर्ण साधनों से किया जानें वाला फलित गलत क्यों होता है यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण तो यह है कि सही कैसे हो जाताहै? ज्योतिषी का भाग्य, जुगाड़ कभी-कभी काम कर जाता है।
फलित ज्योतिष के लिए आवश्यक है कि संहिता,गणित और फलित का विस्तृत ज्ञान होंना चाहिये। पंचाग दृग ज्योतिष पर बनाना पहली शर्त है। आज पंचांग बन रहे हैं लहरी एफेमरी जो नाटिकल एल्मनॅक पर आधारित है, के आँकड़ों पर। वह भी मध्यगतिमान (मीन) पर। वह भी एड्वाँस आँकड़ो पर। १००-१०० साल की एड्वाँस एफेमरीज़ आती हैं। कई पंचांग खरीदिये और फिर देखिये उन के अन्तर। कम्प्यूटर प्रोग्राम में चूकि डाटाबेस वही एफेमेरी/अल्म है अतः समान चूक वहाँ भी है। ग्रह आकाश में सदैव एक निश्चित गति से चलते हैं यह मुख्य आधार है।अन्तरिक्ष में, सौर धब्बो के अधिक बनने/ कम बननें या किसी केतु (कामेट) के संचरण या अन्य किसी अभिनव खगोलीय घटना वश ग्रहों की गति, भ्रमण स्थिति आदि पर विचलनकारी प्रभाव पड़्ते हैं, उनका आँकलन तभी संभव है जब दृग ज्योतिषीय आधार पर पंचांग निर्मित हों। पहले करण आदि शोधन कर आकाशीय ग्रह स्थिति से साम्य रखते हुए पंचांग बनते थे। अब वैसे शुद्ध पंचांग बनाना लोग भूलते जा रहे हैं।
एक-महत्वपूर्ण बिन्दू है निरयण और सायण गणना का। प्रारब्ध की व्याख्या निरयण से और जातक की वर्तमान स्थिति की गणना सायण से या इन दोंनों के तारतम्य से करनी चाहिये, यह विवेचना और शोध का विषय है। दोंनों का तारतम्य रखे बिना चूक होगी। दूसरा-बिन्दु है जन्म,प्रश्न या घटना के सही समय का, समय की शुद्धता पर संशय हो तो सिद्धान्तानुसार सही करे और कुछ प्रश्नों को जाँच कर, समय स्थिर करें। तीसरा-बिन्दु है स्थानीय समय का सही मापन। चौथा-बिन्दु है, लग्नादि की शुद्धता और सही ग्रह स्थिति का जन्मांक में निरूपण। मेदनीय ज्योतिष के विशिष्ट सिद्धान्त अलग हैं। कहनें का तात्पर्य यह कि लगभग ७० बिन्दुओं को ध्यान में रखकर कुण्ड़ली पर फलित करें। यह सब नहीं कर सकते हैं तो कृपाकर ज्योतिष को बदनाम न करें। पहले ज्योतिषी को राज्याश्रय प्राप्त होता था, घर चलानें की चिन्ता उसे नहीं सताती थी, इसीलिए मन रमा कर वह कार्य करता था। ११-२१-५१ में फलित जानने और बतानें वाले एक दूसरे को मूर्ख बना रहे हैं।अर्वाचीन काल में स्व० कृष्णमूर्ति जी नें सत्याचार और नाड़ी ग्रन्थों को आधार बना एक नई विधा के रूप में कृष्णमूर्ति पद्धति का पुनरुद्धार किया था जो घटना के सही समय निरूपण में अधिक फलदायी होती है।
शरद कोकास जी नें डा० जयन्त नार्ळीकर जी के नाम से धमकानें का अभद्र प्रयास किया है वह उचित नहीं है। मैंनें यद्यपि शौकिया ज्योतिष सीखी थी तो भी मै २० में से १८ कुण्ड़लियों में स्त्री-पुरुष में अन्तर बता दूँगा,शर्त यह कि मुझे १५ दिन का समय और २५०००रु० दिया जाए। साथ ही अत्यन्त गंभीरता और विनम्रता से मैं श्री नार्ळीकर को चुनौती देता हुँ कि अगले एक वर्ष में किस तिथि को भूकम्प आयेगा उसकी निश्चित जानकारी दें तो मै उन्हें २५००० रुपया पुरुष्कार स्वरूप भेंट करूँगा।यह दोनो शर्ते एक साथ मान्य होंगी। शरद जी नें एक आवश्यक प्रश्न जन्म समय को लेकर उठाया है। जन्म चाहे सामान्य हो या सीज़ेरियन से- गर्भनाल से विच्छेदन का समय ही जन्म का सही समय माना जायेगा।
ज्योतिष विज्ञान है यह आनें वाले वर्षों में विज्ञान ही सिद्ध करेगा। विज्ञान अभी युवा हो रहा है, इसीलिए गर्वोन्न्त बन रहा है और कुछ कम्युनिस्ट टाइप मूर्ख बिना नए आदर्श स्थापित किये पुरानें आदर्शों/परंपराओं/ज्ञान/विज्ञान को ध्वस्त करनें के लिए उसका गलत-सलत इस्तेमाल कर रहे हैं। हफ्तों तक मीडिया पर धूम-धड़ाके के साथ जीवंत प्रसारित किये गये ‘हेड्रान कोलाईड़र’ का क्या हुआ? अरबों-खरबों रुपये के खर्च पर पलनें वाला विज्ञान अभी तक यह भी नहीं जानता कि मंगल लाल क्यों दिखता है, शनि चित्र-विचित्र रंगों से युक्त क्यों है, बृहस्पति पीला क्यों दिखता है आदि और इनका पृथ्वी और पृथ्वी पर रहनें वालों पर क्या कोई प्रभाव पड़ता है? वह भी तब जब वह इसी सौरमण्डल के सदस्य हैं जिसमें हमारी पृथ्वी है। अनेकानेक प्रश्न हैं जिन्हें विज्ञान जानने का प्रयास कर रहा है और यह प्रयास जारी रहनें भी चाहिये, किन्तु पिछला सब व्यर्थ है यह घमण्ड वैज्ञानिकता के रेशनेल को नष्ट करता है।
अंत में एक बात ज्योतिषियों और ज्योतिष अनुरागियों से कहना चाहता हूँ, ज्योतिष को वेदों का अर्थात ज्ञान का नेत्र कहा गया है, अपनें तर्क रहित वक्तव्य से उसे गरिमा रहित मत कीजिये। ६७ तक जन्में व्यक्तियों को कष्ट झेलनें पड रहे होंगे जैसे वक्तव्य ज्योतिष के सिद्धान्त के ही नहीं तर्क के भी विपरीत है। ज्योतिष अत्यंत श्रमसाध्य कार्य है। सतत अध्यवसाय से ही पुष्ट होगी, जिसमें अधिकांश ज्योतिषी पिछड़ रहें है। ज्योतिषियों से मेरा एक प्रश्न है--पूर्वीय क्षितिज पर उदय होंने वाली राशि को ‘लग्न’कहते हैं। हर दो घण्टे में यह राशि बदलती रहती है। अर्थात जन्म, प्रश्न या घटना के समय जो राशि पूर्वी क्षितिज पर होती है वह महत्वपूर्ण होती है। “प्रश्न है कि यह पूर्वीय क्षितिज क्यों महत्वपूर्ण है?” समाधानपूर्ण उत्तर देने वाले को ५००रु० प्रोत्साहन स्वरूप प्राप्त होंगे।
प्रस्तुतकर्ता सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ पर ९:१७ PM 5 टिप्पणियाँ
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